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{{KKRachna
|रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी
|अनुवादक=|संग्रह=}} WD WD {{KKAnthologyVarsha}}{{KKCatKavita}} <poem>
मैं सोचता था
 
पानी उतना ही साफ पिलाया जाएगा
 
जितना होता है झरनों का
 
चिकित्सक बिलकुल ऐसी दवा देंगे
 
जैसे माँ के दूध में तुलसी का रस
 
मैं जहर खाने जाऊँगा
 
तो रोक लेगा कोई
 
ड्रायवर मंजिल तक पहुँचा देगा
 
और मैं मार लूँगा एक नींद
 
घर पहुँचूँगा तो बाल-बच्चे मिलेंगे सही-सलामत
 
ट्रेन के सामने आ जाने पर
 
लगा दिया जाएगा ब्रेक ऐन मौके पर
 
और लोग डाँट पिलाएँगे-
 
'यह क्या नादानी है, दुनिया अभी जीने लायक है।'
</poem>
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