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{{KKRachna
|रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी
|अनुवादक=|संग्रह=}}विजयशंकर चतुर्वेदी {{KKAnthologyVarsha}} ND ND {{KKCatKavita}} <poem>
मुझे आने दो
 
हँसते हुए अपने घर
 
एक बार मैं पहुँचना चाहता हूँ
 
तुम्हारी खिलखिलाहट के ठीक-ठीक करीब
 
जहाँ तुम मौजूद हो पूरे घरेलूपन के साथ
 
बिना परतदार हुए कैसे जी लेती हो इस तरह?
 
सिर्फ एक बार मुझे बुलाओ
 
खिलखिलाकर तहें खोलो मेरी
 
जान लेने दो मुझे
 
घर को घर की तरह
 
सिर्फ एक बार।
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