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{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=सांध्यगीत / महादेवी वर्मा
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<poem>रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br>लोचनों में क्या मदिर नव?<br>देख जिसकी नीड़ की सुधि फूट निकली बन मधुर रव!<br><br>
झूलते चितवन गुलाबी-<br>में चले घर खग हठीले!<br>रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br><br>
छोड़ किस पाताल का पुर?<br>राग से बेसुध, चपल सजीले नयन में भर,<br>रात नभ के फूल लाई,<br>आँसुओं से कर सजीले!<br>रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br><br>
आज इन तन्द्रिल पलों में!<br>उलझती अलकें सुनहली असित निशि के कुन्तलों में!<br><br>
सजनि नीलमरज भरे<br>रँग चूनरी के अरुण पीले!<br>रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br><br>
रेख सी लघु तिमिर लहरी,<br>चरण छू तेरे हुई है सिन्धु सीमाहीन गहरी!<br><br>
गीत तेरे पार जाते<br>बादलों की मृदु तरी ले!<br>रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br><br>
कौन छायालोक की स्मृति,<br>कर रही रङ्गीन प्रिय के द्रुत पदों की अंक-संसृति,<br><br>
सिहरती पलकें किये-<br>देती विहँसते अधर गीले!<br>रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br><br/poem>
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