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{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=सांध्यगीत / महादेवी वर्मा
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<poem>शलभ मैं शापमय वर हूँ!<br>किसी का दीप निष्ठुर हूँ!<br><br>
ताज है जलती शिखा<br>चिनगारियाँ श्रृंगारमाला;<br>ज्वाल अक्षय कोष सी<br>अंगार मेरी रंगशाला;<br>नाश में जीवित किसी की साध सुन्दर हूँ!<br><br>
नयन में रह किन्तु जलती<br>पुतलियाँ आगार होंगी;<br>प्राण मैं कैसे बसाऊँ<br>कठिन अग्नि-समाधि होगी;<br>फिर कहाँ पालूँ तुझे मैं मृत्यु-मन्दिर हूँ!<br>हो रहे झर कर दृगों से<br>अग्नि-कण भी क्षार शीतल;<br>पिघलते उर से निकल<br>निश्वास बनते धूम श्यामल;<br>एक ज्वाला के बिना मैं राख का घर हूँ!<br><br>
कौन आया था न जाना<br>स्वप्न में मुझको जगाने;<br>याद में उन अँगुलियों के<br>है मुझे पर युग बिताने;<br>रात के उर में दिवस की चाह का शर हूँ!<br><br>
शून्य मेरा जन्म था<br>अवसान है मूझको सबेरा;<br>प्राण आकुल के लिए<br>संगी मिला केवल अँधेरा;<br>मिलन का मत नाम ले मैं विरह में चिर हूँ!<br><br/poem>
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