भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=दीपशिखा / महादेवी वर्मा
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सब बुझे दीपक जला लूं
घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं
सब बुझे दीपक जला लूं<br>क्षितिज कारा तोडकर अबगा उठी उन्मत आंधी,अब घटाओं में न रुकतीलास तन्मय तडित बांधी,घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं <br><br>!
क्षितिज कारा तोडकर अब <br>भीत तारक मूंदते द्रगगा उठी उन्मत आंधीभ्रान्त मारुत पथ न पाता, <br>अब घटाओं छोड उल्का अंक नभ में न रुकती <br>लास तन्मय तडित बांधी, <br>ध्वंस आता हरहराताधूल उंगलियों की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूं! <br><br>
भीत तारक मूंदते द्रग <br>लय बनी मृदु वर्तिकाभ्रान्त मारुत पथ न पाताहर स्वर बना बन लौ सजीली, <br>छोड उल्का अंक नभ में <br>फैलती आलोक सीध्वंस आता हरहराता<br>झंकार मेरी स्नेह गीलीउंगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा इस मरण के पर्व को मैं आज दीवाली बना लूं!<br><br>
लय बनी मृदु वर्तिका<br>देखकर कोमल व्यथा कोहर स्वर बना बन लौ सजीलीआंसुओं के सजल रथ में,<br>फैलती आलोक मोम सी <br>सांधे बिछा दींझंकार मेरी स्नेह गीली <br>थीं इसी अंगार पथ मेंइस मरण के पर्व को मैं आज दीवाली बना स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार में उनको सुला लूं!<br><br>
देखकर कोमल व्यथा को <br>आंसुओं के सजल रथ में,<br>मोम सी सांधे बिछा दीं<br>थीं इसी अंगार पथ में<br>स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार में उनको सुला लूं!<br><br> अब तरी पतवार लाकर <br>तुम दिखा मत पार देना,<br>आज गर्जन में मुझे बस <br>एक बार पुकार लेना<br>ज्वार की तरिणी बना मैं इस प्रलय को पार पा लूं!<br>आज दीपक राग गा लूं!<br><br/poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,172
edits