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|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=दीपशिखा / महादेवी वर्मा
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<poem>
जो न प्रिय पहिचान पाती।
दौड़ती क्यों प्रति शिरा में प्यास विद्युत-सी तरल बन
क्यों अचेतन रोम पाते चिर व्यथामय सजग जीवन?
किसलिये हर साँस तम में
सजल दीपक राग गाती?
जो न प्रिय पहिचान पाती।<br>दौड़ती क्यों प्रति शिरा में प्यास विद्युतचांदनी के बादलों से स्वप्न फिर-सी तरल बन<br>फिर घेरते क्यों?मदिर सौरभ से सने क्षण दिवस-रात बिखेरते क्यों अचेतन रोम पाते चिर व्यथामय सजग जीवन?<br>किसलिये हर साँस तम में<br>सजग स्मित क्यों चितवनों केसजल दीपक राग गातीसुप्त प्रहरी को जगाती?<br><br>
चांदनी मेघ-पथ में चिह्न विद्युत के बादलों से स्वप्न फिरगये जो छोड़ प्रिय-फिर घेरते क्यों?<br>पद,मदिर सौरभ से सने क्षण दिवस-रात बिखेरते क्यों?<br>जो न उनकी चाप का मैं जानती सन्देश उन्मद,सजग स्मित क्यों चितवनों के<br>किसलिये पावस नयन मेंसुप्त प्रहरी को जगातीप्राण में चातक बसाती?<br><br>
मेघ-पथ में चिह्न विद्युत के गये जो छोड़ प्रिय-पद,<br>जो न उनकी चाप का मैं जानती सन्देश उन्मद,<br>किसलिये पावस नयन में<br>प्राण में चातक बसाती?<br><br> कल्प-युगव्यापी विरह को एक सिहरन में सँभाले,<br>शून्यता भर तरल मोती से मधुर सुधि-दीप बाले,<br>क्यों किसी के आगमन के<br>शकुन स्पन्दन में मनाती?<br><br/poem>
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