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|रचनाकार=महादेवी वर्मा
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|संग्रह=प्रथम आयाम / महादेवी वर्मा
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<poem>
सिरमौर सा तुझको रचा था
 
विश्व में करतार ने,
 
आकृष्ट था सब को किया
 
तेरे, मधुर व्यवहार ने।
 
नव शिष्य तेरे मध्य भारत
नित्य आते थे चले,
 
जैसे सुमन की गंध से
 
अलिवृन्द आ-आकर मिले।
 वह युग कहाँ अब खो गयावे देव वे देवी नहीं, 
ऐसी परीक्षा भाग्य ने
 
किस देश की ली थी कहीं।
 
जिस कुंज वन में कोकिला के
 
गान सुनते थे भले,
 
रव है उलूकों का वहाँ
 
क्या भाग्य हैं अपने जले।
 
अवतार प्रभु लेते रहे
 
अवतार ले फिर आइए,
 इस दीन भारतवर्ष को  
फिर पुण्य भूमि बनाइए।
 ''यह महादेवी जी के बचपन की रचना है।''</poem>
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