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<poem>वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला,<br>जिसमें मैं बिंबित-प्रतिबिंबत प्रतिपल, वह मेरा प्याला,<br>मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है,<br>भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।।१२१।<br><br>
मतवालापन हाला से लेकर मैंने तज दी है हाला,<br>पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला,<br>साकी से मिल, साकी में मिल, अपनापन मैं भूल गया,<br>मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।।१२२।<br><br>
मदिरालय के द्वार ठोकता किस्मत का छूंछा प्याला,<br>गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला,<br>कितनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया!<br>बंद हो गई कितनी जल्दी मेरी जीवन मधुशाला।।१२३।<br><br>
कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गयी सुरिभत हाला,<br>कहाँ गया स्वपिनल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला!<br>पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?<br>फूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।।१२४।<br><br>
अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला, <br>अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,<br>फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया -<br>अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।१२५।<br><br>
'मय' को करके शुद्ध दिया अब नाम गया उसको, 'हाला'<br>'मीना' को 'मधुपात्र' दिया 'सागर' को नाम गया 'प्याला',<br>क्यों न मौलवी चौंकें, बिचकें तिलक-त्रिपुंडी पंडित जी<br>'मय-महिफल' अब अपना ली है मैंने करके 'मधुशाला'।।१२६।<br><br>
कितने मर्म जता जाती है बार-बार आकर हाला,<br>कितने भेद बता जाता है बार-बार आकर प्याला,<br>कितने अर्थों को संकेतों से बतला जाता साकी,<br>फिर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला।।१२७।<br><br>
जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,<br>जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,<br>जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,<br>जितना हो जो रिसक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला।।१२८।<br><br>
जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला,<br>जिस कर को छू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला,<br>आँख चार हों जिसकी मेरे साकी से दीवाना हो,<br>पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।।१२९।<br><br>
हर जिहवा पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला<br>हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला<br>हर घर में चर्चा अब होगी मेरे मधुविक्रेता की<br>हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुरिभत मधुशाला।।१३०।<br><br>
मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला,<br>मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला,<br>मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,<br>जिसकी जैसी रुचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला।।१३१।<br><br>
यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला,<br>यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला,<br>किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,<br>नहीं-नहीं किव का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला।।१३२। <br><br>
कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,<br>कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!<br>पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,<br>कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!।१३३।<br><br>
विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला<br>यदि थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,<br>शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,<br>जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।।१३४।<br><br>
बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,<br>कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,<br>मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,<br>विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।।१३५।<br><br>
=='''पिरिशष्ट से=='''
स्वयं नहीं पीता, औरों को, किन्तु पिला देता हाला,<br>स्वयं नहीं छूता, औरों को, पर पकड़ा देता प्याला,<br>पर उपदेश कुशल बहुतेरों से मैंने यह सीखा है,<br>स्वयं नहीं जाता, औरों को पहुंचा देता मधुशाला।<br><br>
मैं कायस्थ कुलोदभव मेरे पुरखों ने इतना ढ़ाला,<br>मेरे तन के लोहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला,<br>पुश्तैनी अधिकार मुझे है मदिरालय के आँगन पर,<br>मेरे दादों परदादों के हाथ बिकी थी मधुशाला।<br><br>
बहुतों के सिर चार दिनों तक चढ़कर उतर गई हाला,<br>बहुतों के हाथों में दो दिन छलक झलक रीता प्याला,<br>पर बढ़ती तासीर सुरा की साथ समय के, इससे ही<br>और पुरानी होकर मेरी और नशीली मधुशाला।<br><br>
पित्र पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में, पर प्याला<br>बैठ कहीं पर जाना, गंगा सागर में भरकर हाला<br>किसी जगह की मिटटी भीगे, तृप्ति मुझे मिल जाएगी<br>तर्पण अर्पण करना मुझको, पढ़ पढ़ कर के मधुशाला।<br><br/poem>
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