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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|अनुवादक=
|संग्रह=बहुत दिन बीते / हरिवंशराय बच्चन
}}
{{KKCatKavita}}<poem>शब्‍दशब्द-बद्ध 
तुमको करने का
 
मैं दु:साहस नहीं करूँगा
 
तुमने
 
अपने अंगों से
 
जो गीत लिखा है-
 
विगलित लयमय,
 नीरव स्‍वरमयस्वरमय
सरस रंगमय
 
छंद-गंधमय-
 
उसके आगे
 मेरे शब्‍दों शब्दों का संयोजन- 
अर्थ-समर्थ बहुत होकर भी-
 
मेरी क्षमता की सीमा में-
 
एक नई कविता-सा केवल
 
जान पड़ेगा-
 
लय पवहीन,
 रसरिक्‍तरसरिक्त
निचोड़ा,
 
सूखा, भेड़ा।
 
ओ माखन-सी
 
मानस हंसिनि,
 गीत तुम्‍हारातुम्हारा
जब मैं फिर सुनाना चाहूँगा,
 अपने चिर-परिचित शब्‍दों शब्दों से 
नहीं सहरा मैं मागूँगा।
 
कान रूँध लूँगा,
 
मुख अपना बंद करूँगा,
 
पलकों में पर लगा
 
समय-अवकाश पार कर
 क्षीर-सरोवर तीर तुम्‍हारेतुम्हारे
उतर पड़ूँगा,
 तुम्‍हे तुम्हे निहारूँगा, 
नयनों से
 जल-मुक्‍ताहल मुक्ताहल तरल भड़ूँगा!</poem>
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