|संग्रह=साये में धूप / दुष्यन्त कुमार
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[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।
मत कहोसूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से, आकाश में कुहरा घना हैक्या करोगे,<br>यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना सूर्य का क्या देखना है ।<br><br>
सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह सेइस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,<br>क्या करोगे, सूर्य हर किसी का क्या देखना पाँव घुटनों तक सना है ।<br><br>
इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी हैपक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,<br>हर किसी का पाँव घुटनों तक सना बात इतनी है कि कोई पुल बना है ।<br><br>
पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद रक्त वर्षों से नसों में मुखर हैंखौलता है,<br>बात इतनी है कि कोई पुल बना आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है<br><br>।
रक्त वर्षों से नसों में खौलता हैहो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,<br>आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना शौक से डूबे जिसे भी डूबना है ।<br><br>
हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,<br>शौक से डूबे जिसे भी डूबना है ।<br><br> दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है,<br>आजकल नेपथ्य में संभावना है ।<br><br/poem>