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Kavita Kosh से
प्रतिरोधी
सबका स्वर होगा।
सोचो कैसा मंजर मंज़र होगा!
बहता नीर
आप सभी तो
समझदार हैं क्या यह उचित फैसला फ़ैसला होगा?अनुशासन के बिना धरा पर नदियाँ नहीं जलजला ज़लज़ला होगा।
सबकी
आँखों में डर होगा।
सोचो कैसा मंजर मंज़र होगा!
मुझसे ऊँचा
आकाश अगर
इस जिद ज़िद पर है फिर किसका क्या उड़ान भरना!
अब तो पेड़ों मुंडेरों पर कोयल का आहत स्वर सुनना।
पंछी पर होगा।
सोचो कैसा मंजर मंज़र होगा!
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