लेखक: [[सुमित्रानंदन पंत]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत]]|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>जीवन का श्रम ताप हरो हे!सुख सुषुमा के मधुर स्वर्ण हे!सूने जग गृह द्वार भरो हे!
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~लौटे गृह सब श्रान्त चराचरनीरव, तरु अधरों पर मर्मर,करुणानत निज कर पल्लव सेविश्व नीड प्रच्छाय करो हे!
जीवन का श्रम ताप हरो हे!<br>सुख सुषुमा के मधुर स्वर्ण हे!<br>सूने जग गृह द्वार भरो हे!<br><br> लौटे गृह सब श्रान्त चराचर<br>नीरव, तरु अधरों पर मर्मर,<br>करुणानत निज कर पल्लव से<br>विश्व नीड प्रच्छाय करो हे!<br><br> उदित शुक्र अब, अस्त भनु बल,<br>स्तब्ध पवन, नत नयन पद्म दल<br>तन्द्रिल पलकों में, निशि के शशि!<br>सुखद स्वप्न वन कर विचरो हे!<br><br/poem>