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जाने कितनी बार
नदी के तट तक मेरा घट पहुंचेगा
एक बार में भर जाना शायद नसीब में लिखा नही।नहीं।
छोटे मोटे ताल तलैय्या
अनगिन गीत
पढ़े हैं मैंने नचिकेता के प्रश्नों जैसे
लेकिन उनका उत्तर मुझको कालपृष्ठ पर दिखा नही।नहीं।
माना सब कुछ
नदी बहाकर सागर तट तक ले जाती है।
किन्तु, कहाँ, कब, कैसे, क्यों की अग्नि नही नहीं बुझने पाती है।
परछाई को उजला
करना चाह रहा है दीपक लेकिन
दीपक के नीचे उजियारा करने वाली शिखा नही।नहीं।
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