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उस ज़ुल्फ़ की याद जब आने लगी
इक नागन-सी लहराने लगी
क्यों आँख तेरी शरमाने लगी
क्यों ज़ुल्फ़ तेरी बल खाने लगी
कुछ साग़र-सी छलकाने लगी
या रब यॉ याँ चल गयी कैसी हवा
क्यों दिल की कली मुरझाने लगी
क्या बात हुई ये आँख तेरी
क्यों लाखों कसमें क़समें खाने लगी
अब मेरी निगाहे-शौक़ तेरे
गुलज़ारों को महकाने लगी
बेगोरो-कफ़न क़फ़न जंगल में ये लाश दीवाने की ख़ाक उड़ाने लगी
वो सुब्ह की देवी ज़ेरे -शफ़क़
घूँघट-सी ज़रा सरकाने लगी
उस वक्त 'फ़िराक' हुई यॅ ये ग़ज़ल
जब तारों को नींद आने लगी
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