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खुल गये ज़िन्दगी के मयख़ाने
आज तो कुफ्रेकुफ़्र-इश्क़े ए-इश्क़ चौंक उठा
आज तो बोल उठे हैं दीवाने
कुछ गराँ<supref>1भारी</supref> हो चला है बारे-नशातआज दुखते हैं हुस्ने हुस्न के शाने<supref>2कन्धे</supref>
बाद मुद्दत के तेरे हिज्र में ‍फि‍र
तू भी आमादा-ए-सफ़र हो 'फ़िराक़'
काफ़िले उस तरफ़ लगे जाने
 
1- भारी, 2- कन्धे
 
</poem>
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