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मेरी ग़ज़ल में मिलेगा तुझे वो आलमे-राज़
जहां हैं एक अज़ल <ref>ग़म</ref> से हक़ीक़त और मजाज़
वो ऐन महशरे-नज़्जारा हो कि ख़लवते-राज़<supref>1गुप्त एकांत</supref>कहीं भी बन्द- नहीं है निगाहे-शाहिदबाज़<supref>2सौन्दर्य के प्रति आसक्त आँखें</supref>
हवाएं नींद के खेतों से जैसे आती हों
ये जंग क्या है लहू थूकता है नज़्मे-कुहन
शिगू़फ़े और खिलायेगा वक़्ते -शोबदाबाज़<supref>3बाज़ीगर समय</supref>
मशीअ़तों को बदलते हैं ज़ोरे-बाजू़ से
'हरीफ़े-मतलबे-मुश्किल नहीं फ़सूने-नेयाज़<supref>4जादुई अदा</supref>
इशारे हैं ये बशर की उलूहियत की तरफ़
भरम तो क़ुर्बते-जानाँ का रह गया क़ाइम
ले आड़े आ ही गया चर्खे़-तफ़र्का़-परदाज़<supref>5वैमनस्य पैदा करने वाला आकाश</supref>
निगाहे-चश्मे-सियह कर रहा है शरहे-गुनाह
न छेड़ ऐसे में बहसे-जवाज़ो-गै़रे-जवाज़<supref>6उचित-अनुचित का तर्क</supref>
ये मौजे-नकहते-जाँ-बख़्श यूँ ही उठती है
बहारे-गेसु-ए-शबरंग तेरी उम्र दराज़
ये बोल उठे कि है ये तो सुनी हुई आवाज़
फ़िराक़ मंजि़ले-जानाँ वो दे रही है झलक
बढ़ो कि आ ही गया वो मुक़ामे-दूरो-दराज़
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