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|संग्रह=
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बाग़-ए-जन्नत में पे घटा जैसे बरस के खुल जाये<br>जाए सोंधी सोंधी तेरी ख़ुश्बूये सुहानी तिरी ख़ुशबू-ए-बदन क्या कहना <br><br>
जिस तरह जल्वा-ओ-पर्दा का ये रंग दम-ए-नज़्ज़ारा<br>फ़िर्दोस हवाओं से छिने जिस तरह अध-खुले घुँघट पैरहन में दुल्हन तिरे रंगीनी-ए-तन क्या कहना<br><br>
दम-ए-तक़रीर खिल उठते हैं गुलिस्ताँ क्या क्या यूँ तो इक ग़ुंचा-ए-नौरस है दहन क्या कहना दिल के आईने में इस तरह उतरती है निगाह जैसे पानी में लचक जाए किरन क्या कहना लहलहाता हुआ ये क़द ये लहकता जोबन ज़ुल्फ़सो महकी हुई रातों का बन क्या कहना तू मोहब्बत का सितारा तो जवानी का सुहाग हुस्न लौ देता है लाल-ए-शबगूँ यमन क्या कहना तेरी आवाज़ सवेरा तिरी बातें तड़का आँखें खुल जाती हैं एजाज़-ए-सुख़न क्या कहना ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ की चमक पैकर-ए-सीमें सीमीं की दमक <br>दीप -माला है सर-ए-गंग-ओ-जमन क्या कहना नीलगूँ शबनमी कपड़ों में बदन की ये जोत जैसे छनती हो सितारों की किरन क्या कहना <br/poem>v