भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विक्रम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार विक्रम
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
किसी से उसके दुख के बारे में न पूछना
एक तरकीब अच्छी है
उसके दुख में शामिल होने की
घाव से मवाद निकालने की कला
बेहतर है
माहिर डॉक्टर या नर्स के लिए
छोड़ दी जाए
क्यों तुम अपनी ईजाद की हुई दवा
मरहम-पट्टी चाक़ू छुरी लेकर
उसके दुख को कुरेदना चाहते हो
अस्पताल के वार्ड बॉए रिसेपशनिस्ट
पोछा लगाती कामवाली को देखो
जो दुख के आसपास घूमते हीं रहते हैं
दुख से पूर्णत: विमुख
बिजली का मिस्त्री
मरीज़ के कमरे के पंखों को
ठीक करने आया हुआ है
और मरीज़ का हाल पूछे बग़ैर
उसके द्वारा चलाए पंखे की हवा ही
एक सुखद संपर्क सूत्र है
उसके और मरीज़ के बीच
मरीज़ से मिलो तो ज़रूर
पर उस वार्ड बॉए की तरह
जो मरीज़ को मशगूल रखता है
बीती शाम को हुई
बेमौसम बारिश की बातचीत में
या राजनीतिक उठापटक की
चीरफाड़ करने में
या फिर बारहवीं पास किए बच्चे के
किसी कोर्स में एडमिशन की चर्चाओं में
किसी से उसके दुख में न पूछना
एक तरकीब अच्छी है
उसके दुख में शामिल होने की
क्योंकि दुख तो उसका आँगन है
जहाँ हम-तुम चहलक़दमी करते
अच्छे नहीं दिखते
उसके दरवाज़े के बाहर
बरामदे में ही बैठकर
दूर से धीरे-धीरे
चाय की चुस्की लेते हुए
हमारा-तुम्हारा बार बार लौटना
उसके दुख की टीस को
कुछ कम कर सकता है
''‘नया ज्ञानोदय’, 2008''
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार विक्रम
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
किसी से उसके दुख के बारे में न पूछना
एक तरकीब अच्छी है
उसके दुख में शामिल होने की
घाव से मवाद निकालने की कला
बेहतर है
माहिर डॉक्टर या नर्स के लिए
छोड़ दी जाए
क्यों तुम अपनी ईजाद की हुई दवा
मरहम-पट्टी चाक़ू छुरी लेकर
उसके दुख को कुरेदना चाहते हो
अस्पताल के वार्ड बॉए रिसेपशनिस्ट
पोछा लगाती कामवाली को देखो
जो दुख के आसपास घूमते हीं रहते हैं
दुख से पूर्णत: विमुख
बिजली का मिस्त्री
मरीज़ के कमरे के पंखों को
ठीक करने आया हुआ है
और मरीज़ का हाल पूछे बग़ैर
उसके द्वारा चलाए पंखे की हवा ही
एक सुखद संपर्क सूत्र है
उसके और मरीज़ के बीच
मरीज़ से मिलो तो ज़रूर
पर उस वार्ड बॉए की तरह
जो मरीज़ को मशगूल रखता है
बीती शाम को हुई
बेमौसम बारिश की बातचीत में
या राजनीतिक उठापटक की
चीरफाड़ करने में
या फिर बारहवीं पास किए बच्चे के
किसी कोर्स में एडमिशन की चर्चाओं में
किसी से उसके दुख में न पूछना
एक तरकीब अच्छी है
उसके दुख में शामिल होने की
क्योंकि दुख तो उसका आँगन है
जहाँ हम-तुम चहलक़दमी करते
अच्छे नहीं दिखते
उसके दरवाज़े के बाहर
बरामदे में ही बैठकर
दूर से धीरे-धीरे
चाय की चुस्की लेते हुए
हमारा-तुम्हारा बार बार लौटना
उसके दुख की टीस को
कुछ कम कर सकता है
''‘नया ज्ञानोदय’, 2008''
</poem>