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|रचनाकार=अरविन्द 'प्रकृति प्रेमी'
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<poem>
जब मेरा गौं मा
सड़क अर बिजली
आयी थै तब मैंन
सोची थौ कि, अब
पलायन रुकि जालु
हमारि सबसि बड़ि
द्वी समस्या निबटि गैन पण,
य त पाड़योंक
पलायन कि सौंगि सार बणिक रैगि।
</poem>
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