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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
मेरे ज़ौके-जुस्तजू ने सर किये मिर्रीखो-माह
किस बलंदी पर है मेरे ज़हन की गहराइयाँ

ज़िन्दगी मेरे लिए है इक मुसल्सल रम्ज़-गाह
मेरे ज़ौके-जुस्तजू ने सर किये मिर्रीखो-माह
दूर-रस मेरा तसव्वुर, दूर-रस मेरी निगाह

दस्तरस में शौक़ की मेरे हैं सब पहनाइयां

मेरे ज़ौके-जुस्तजू ने, डर किये मिर्रीखो-माह
किस बुलंदी पर है मेरे ज़ेहन की गहराइयाँ।
</poem>
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