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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
मैं हैरत-ज़दह तक रहा था ख़ला में
बहुत दिल-नशीं था फ़लक का नज़ारा
फरामोश खुद से खड़ा था दुआ में
आदमी है आदमीयत से जुदा
अचानक हुई सनसनाहट फ़ज़ा में
ज़मीं की तरफ चल दिया एक तारा
आदमी है आदमीयत से जुदा
ज़िन्दगी का ये भी इक अंदाज़ है।
</poem>
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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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मैं हैरत-ज़दह तक रहा था ख़ला में
बहुत दिल-नशीं था फ़लक का नज़ारा
फरामोश खुद से खड़ा था दुआ में
आदमी है आदमीयत से जुदा
अचानक हुई सनसनाहट फ़ज़ा में
ज़मीं की तरफ चल दिया एक तारा
आदमी है आदमीयत से जुदा
ज़िन्दगी का ये भी इक अंदाज़ है।
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