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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
ग़म की पहनाई में क्या है चंद लम्हों की खुशी
आसमां के राज़ में मत आस बादल पर लगा

क्यों सजा रक्खी है तूने लब पे यह झूठी हंसी
ग़म की पहनाई में क्या है चंद लम्हों की खुशी
घुप अंधेरी रात में क्या जुगनुओं की रौशनी

हो सके तो जोत कोई अपने अंदर जगा

ग़म की पहनाई में क्या है चंद लम्हों की खुशी
आसमां के राज़ में मत आस बादल पर लगा।
</poem>
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