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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
प्यार से भी क्यों देखे, सिरफिरी हवा मुझको
शाख़ पर तो हूँ लेकिन एक ज़र्द पत्ता है

बद-हवास रखती है, उसकी हर अदा मुझको
प्यार से भी क्यों देखे, सिरफिरी हवा मुझको
ज़िन्दगी दिखाती है रोज़ आइना मुझको

पस उसी के सदक़े से, बार बार कहता हूँ

प्यार से भी क्यों देखे, सिरफिरी हवा मुझको
शाख़ पर तो हूँ लेकिन एक ज़र्द पत्ता है।
</poem>
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