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कहीं छवि विष्णु की बाकी, कहीं शंकर की है झाँकी।
हृदय आनंद झूले पर झुलाती रोज रामायण॥
सरल कविता कि की कुंजों में बना मंदिर है हिंदी का।
जहाँ प्रभु प्रेम का दर्शन कराती रोज रामायण॥
कभी वेदों के सागर में कभी गीता कि की गंगा में।सभी रस ‘बिन्दु’ में मन को दुबाती दबाती रोज रामायण॥
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