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{{KKRachna
|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम्हीं कर गए मुझे
बदनाम इतना कि तुम्हारे कफ़न के भीतर से
मुस्कराता हुआ
एक झूठ निकला बाहर और मँडराकर
एक-एक चेहरे पर
कुछ कहता रहा...
जबकि
मेरे आँसुओं की लड़ी से
टूटकर गिरे
बहुत सारे सच
सिसकते हुए
परिक्रमा ही करते रहे
तुम्हारे शव की...!
</poem>
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|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
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<poem>
तुम्हीं कर गए मुझे
बदनाम इतना कि तुम्हारे कफ़न के भीतर से
मुस्कराता हुआ
एक झूठ निकला बाहर और मँडराकर
एक-एक चेहरे पर
कुछ कहता रहा...
जबकि
मेरे आँसुओं की लड़ी से
टूटकर गिरे
बहुत सारे सच
सिसकते हुए
परिक्रमा ही करते रहे
तुम्हारे शव की...!
</poem>