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{{KKRachna
|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
}}
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<poem>
आज
इतने सारे काले बाल मिलकर
एक सफ़ेद बाल का
बोझ नहीं उठा सकते...

कल
इतने ही सफ़ेद बाल मिलकर
एक काले बाल की
उपस्थिति तक सहन नहीं करेंगे...

आज और कल में ऐसा क्या है
जो बदल जाएगा...?

रंग ही तो..!

आईने का ?
आँखों का ?

नहीं, तुम्हारे भय का !
</poem>
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