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अंतरिक्ष अन्तरिक्ष में बसी इंद्रनगरी इन्द्रनगरी नहीं
न ही पुराणों में वर्णित कोई ग्राम
बनाया गया इसे मिट्टी के लोंदों से
यहाँ के पुल जाते अक्सर टूट
नालियों में होती ही रहती टूट-फूट
इमारतें जर्जर यहाँ की।की । 
द्रविड़ सभ्यता का नगर भी नहीं है यह
यहाँ नहीं सजते हाट काँसे-रेशम के
कतारों में खड़े लोग
बेचते हैं श्रम और कलाएँ सिर झुकाए
करते रहते हैं इंतजार इन्तज़ार किसी देवदूत कारोग, दुःख दुख और चिंताओं चिन्ताओं में डूबे
शाम ढले लौटते हैं ठिकानों पर
नगर में बजती रहती है लगातार कोई शोकधुन।शोकधुन ।
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