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{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''दोहा-'''
अलख निरंजन आप हैं, सब सृष्टि का सार।
मानसिंह गुरु देवता, ज्ञान ध्यान विस्तार।।
'''पांच तत्व का बना पूतला, आग आकाश पवन पृथ्वी जल।'''
'''लख चौरासी जूण में पडक़े, भोगे जीव कर्म का फल।। टेक।।'''
काम क्रोध मोह लोभ में फंसके बात भूल जा सारी।
मन मन में रहे मगन तरंग तृष्णा तन में बीमारी।।
धर्म के कर्म नहीं करते हो रहे मस्त पाप में भारी।
सुख सम्पत्ति ना मिले सदा सुख पाते हैं व्यभिचारी।।
स्वार्थ से मित्र बणके करें झूठ कपट बेईमाना छल।। 1।।
विद्वान इन्सान सदा भगवान का ध्यान करें दिल से।
हिना रंग देता है जैसे पिसके पत्थर की सिल से।।
मूरख को भी ज्ञान मिले है सत पुरुषों की महफिल से।
सतगुरु भेद बतावे इसका सम का पहाड़ ढक़ा तिल से।।
राग द्वेष त्यागे से बढ़े बुद्धि ज्ञान आत्मिक बल।। 2।।
मनुष्य जन्म है एक श्रेष्ठ और बणें कर्म का प्राणी।
मत आलस में पड़े रहो समय बार-बार ना आणी।।
रामायण को पढ़ो हमारी है प्राचीन कहाणी।
वेद के ज्ञाता रावण ने लक्ष्मण से नीति बखाणी।।
आज करे सो अब कर लेना पता जणे के होगा कल।। 3।।
सुरती श्रेष्ठ सही करने को सन्तों की शरणा चहिये।
करम करा हुआ टल नहीं सकता हंसके मरना चहिये।।
धीरज धर्म धारना धन्दा ध्यान में धरना चहिये।
गुरु मानसिंह नाव नाम जप तप से तरणा चहिये।।
कहै रघुनाथ शान्ति करके करना चहिये मतलब हल।। 4।।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''दोहा-'''
अलख निरंजन आप हैं, सब सृष्टि का सार।
मानसिंह गुरु देवता, ज्ञान ध्यान विस्तार।।
'''पांच तत्व का बना पूतला, आग आकाश पवन पृथ्वी जल।'''
'''लख चौरासी जूण में पडक़े, भोगे जीव कर्म का फल।। टेक।।'''
काम क्रोध मोह लोभ में फंसके बात भूल जा सारी।
मन मन में रहे मगन तरंग तृष्णा तन में बीमारी।।
धर्म के कर्म नहीं करते हो रहे मस्त पाप में भारी।
सुख सम्पत्ति ना मिले सदा सुख पाते हैं व्यभिचारी।।
स्वार्थ से मित्र बणके करें झूठ कपट बेईमाना छल।। 1।।
विद्वान इन्सान सदा भगवान का ध्यान करें दिल से।
हिना रंग देता है जैसे पिसके पत्थर की सिल से।।
मूरख को भी ज्ञान मिले है सत पुरुषों की महफिल से।
सतगुरु भेद बतावे इसका सम का पहाड़ ढक़ा तिल से।।
राग द्वेष त्यागे से बढ़े बुद्धि ज्ञान आत्मिक बल।। 2।।
मनुष्य जन्म है एक श्रेष्ठ और बणें कर्म का प्राणी।
मत आलस में पड़े रहो समय बार-बार ना आणी।।
रामायण को पढ़ो हमारी है प्राचीन कहाणी।
वेद के ज्ञाता रावण ने लक्ष्मण से नीति बखाणी।।
आज करे सो अब कर लेना पता जणे के होगा कल।। 3।।
सुरती श्रेष्ठ सही करने को सन्तों की शरणा चहिये।
करम करा हुआ टल नहीं सकता हंसके मरना चहिये।।
धीरज धर्म धारना धन्दा ध्यान में धरना चहिये।
गुरु मानसिंह नाव नाम जप तप से तरणा चहिये।।
कहै रघुनाथ शान्ति करके करना चहिये मतलब हल।। 4।।
</poem>