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{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''दोहा –'''
वासुदेव और देवकी, रहे जेल में बन्द।
भौंरा भिंच गया फूल में, लेता रहा सुगन्ध।।

'''दौड़/राधेश्याम/वार्ता/सरड़ा/जकड़ी:-'''
चमन में बुलबुल चहकती, तो फूल में भौंरा गाता है।
जब पति और पत्नी साथ रहें, तो दुख भी सुख हो जाता।
सतसंग ग्यान कथा कह कह, कर अपना समय बिताते थे।
हेज को सेज सुहानी भगती, अगत जान सो जाते थे।।
इसी तरह रहते-रहते, न्यूं देवकी गर्भ स्थान हुई।
हुआ कंस को पता जभी, पहरे पै डबल किरपान हुई।।
गुजर गये दो चार मांस, और समय पै रंग बदला।
पूरे फेर नो मास हुए, और देवकी का ढंग बदला।।
पाप का पहरा लगा हुआ, न्यूं धर्म बेचारा रोता है।
पूरा लडक़ा पूरे दिन, वहां देवकी जी के होता है।।
उस लडक़े को चला देखने, कंस बली तलवार लिये।
भाई को देख कै हुई देवकी, खड़ी पुत्र का प्यार लिये।।
</poem>
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