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{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''कोई वरदा ले लो मोल, दे दियो सच्चा सोना तोल,'''
'''बोल रहा काशी में ।।टेक।।'''

सत का नैम निभावण खात्तर, सच्चा वीर सजा हुआ,
लडक़ा और राजा रानी, सबका मोहता तजा हुआ,
बजा हुआ भाव का ढोल, बात लो पहले सारी तोल,
सही सन्यासी मैं।।1।।

राजा और रईस बाबू, सभी जमीदारों में,
आड़ती और मुनीम, बड़े-बड़े साहूकारों मे,
लिया बाजारों में डोल, पटी सब साहूकारों की पोल,
रंज हुआ हांसी में।।2।।

साठ भार सोना कीमत, तीनों की काया की,
गर्मी सर्दी झेलें झोक, धूप और छाया की,
माया की मन में होल, झिले है किसी-2 पै झोल,
झलक अठमासी में।।3।।

वेदशास्त्र लेख देखों, सुरती और सुमरती का,
है रघुनाथ सहारा सबको, सच्चे एक कुदरती का,
धरती का नक्शा गोल, मनुष्य न्यूं आया करके कौल,
भजूं अविनाशी मैं।।4।।
</poem>
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