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{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''जिस घर में नहीं सुनाई, बात है बेकार पिया,'''
'''मान चाहे मत मान, मेरा है इन्कार पिया ।।टेक।।'''

मेरा गम से भर गया सीना, घना काम जुवे का हीना,
दुनियां के मांह जीना, दिन चार है पिया।।1।।

मेरी अखियां भरी नीर की, लात मत मारे थाली खीर की,
जिस घर में मर्द बीर की, तकरार है पिया।।2।।

समय बुराई ले लोगे, तन पै सब कुछ झेलोगे,
जो आज जुवा खेलोगे, तो थारी हार है पिया।।3।।

के मिले बुराई पाने में, रघुनाथ सहम मुंह बाने में.
ज्ञान कथा के गाने में, मानसिंह सार है पिया।।4।।
</poem>
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