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{{KKRachna
|रचनाकार=रघुनाथ शाण्डिल्य
|अनुवादक=
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
}}
<poem>
'''मरा हुआ जीवते ने, मारण वाला कौन है।'''
'''बेकायदे का चीर मेरा, तारण वाला कौन है।। टेक।।'''

स्त्री का काम के था, मरदां की पंचात में।
मेरी खता का फैसला है, भीषम जी के हाथ में।।
ऐसी ओछी बात ने, दिल धारण वाला कौन है।।1।।

छोटे और बड़े अफसर, जुड़ी हुई सब सरदारी।
पहले पूछ आओ जाकर, नीति की बात सारी।।
कहदे द्रोणाचारी, खोटे कारण वाला है।।2।।

समाका भी अन्धा हो, है आबरू के ध्यान बिना।
सूना है रघुनाथ जग में, मानसिंह के ज्ञान बिना।।
कारज उस भगवान बिना, सारन वाला कौन है।।3।।
</poem>
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