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03:51, 27 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पूजा प्रियम्वदा
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
हाँ किसी-किसी दिन
अब सब कुछ भूलने लगी हूँ
अपना शहर
तुम्हारा नाम
वो तमाम
साझे सपने
वो समंदर किनारे
रेत का घर
कैसे गिरा था?
हर सुई का निशां
अलग नीला है
तुम्हारे काले कुरते से
कम गहरे हैं
मेरी आँखों के घेरे
मुझे बरसों से
नींद नहीं आयी
सबसे असरदार होती हैं
खुद को दी गयी बददुआएँ
</poem>