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03:52, 27 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पूजा प्रियम्वदा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
हड्डियों के बहुत नीचे
नसों से कहीं गहरे
धमनियों में दौड़ते खून से
बहुत गहरा लाल
अतीत का एक थक्का जमा है
डॉक्टर डरता है
कैंसर बन गया तो
मैं कहती हूँ जाओ
तुम्हारी मशीनें न समझेंगी
रूह के नासूर
</poem>