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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
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'''कला-तीर्थ'''
::दर्शन देता उसे स्वयं तब
::सुन्दर बनकर सत्य निरामय।"
देखा, कवि का स्वप्न मधुर था,
::कला-तीर्थ में आज मिला था
::महा सत्य भावुक सुन्दर से।
फूँक दे जो प्राण में उत्तेजना,
एक पल ठहरे जहाँ जग ही अभय,
खोज करता हूँ उसी आधार की।
</poem>