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{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}<poem>सीखे नित नूतन ज्ञान,नई परिभाषाएं,<br>जब आग लगे,गहरी समाधि में रम जाओ;<br>या सिर के बल हो खडे परिक्रमा में घूमो।<br>ढब और कौन हैं चतुर बुद्धि-बाजीगर के?<br><br>
गांधी को उल्टा घिसो और जो धूल झरे,<br>उसके प्रलेप से अपनी कुण्ठा के मुख पर,<br>ऐसी नक्काशी गढो कि जो देखे, बोले,<br>आखिर , बापू भी और बात क्या कहते थे?<br><br>
डगमगा रहे हों पांव लोग जब हंसते हों,<br>मत चिढो,ध्यान मत दो इन छोटी बातों पर<br>कल्पना जगदगुरु की हो जिसके सिर पर,<br>वह भला कहां तक ठोस कदम धर सकता है?<br><br>
औ; गिर भी जो तुम गये किसी गहराई में,<br>तब भी तो इतनी बात शेष रह जाएगी<br>यह पतन नहीं, है एक देश पाताल गया,<br>
प्यासी धरती के लिए अमृतघट लाने को।
</poem>