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{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
|अनुवादक=
|संग्रह=परशुराम की प्रतीक्षा / रामधारी सिंह "दिनकर"
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<poem>
किरिचों पर कोई नया स्वप्न ढोते हो ?
किस नयी फसल के बीज वीर ! बोते हो ?
दुर्दान्त दस्यु को सेल हूलते हैं हम;
यम की दंष्ट्रा से खेल झूलते हैं हम।
वैसे तो कोई बात नहीं कहने को,
हम टूट रहे केवल स्वतंत्र रहने को।
जातीय गर्व पर क्रूर प्रहार हुआ है,माँ के किरीट पर ही यह वार हुआ है।अब जो असुरसिर पर आ पड़े, हमें सुर समझनहीं डरना है, आज हँसते हैं,<br>वंचक श्रृगाल भूँकते, साँप डँसते जनमे हैं,<br>कल यही कृपा के लिए हाथ जोडेंगे,<br>भृकुटी विलोक दुष्टता-द्वन्द्व छोड़ेंगे।<br><br>तो दो बार नहीं मरना है।
शूरत्व नहीं कोमल, कराल होता है।
</poem>