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|रचनाकार=अभिषेक कुमार अम्बर
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<poem>
मुझको रोज़ाना नए ख़्वाब दिखाने वाले।
बेवफ़ा कहते हैं तुझको ये ज़माने वाले।

तू सलामत रहे मंज़िल पे पहुंचकर अपनी,
बीच राहों में मुझे छोड़ के जाने वाले।

अब न पहले सी शरारत न शराफ़त ही रही,
रूठने वाले रहे अब न मनाने वाले।

ये नयापन मुझे अच्छा नहीं लगता उनका,
कोई लौटा दे मेरे दोस्त पुराने वाले।

दौरे-हाज़िर में ज़रा रहना ख़याल अपना दोस्त,
गेरने वाले बहुत कम हैं उठाने वाले।

सैंकड़ों दोस्तों से लाख भले वो दुश्मन,
ख़ामियां मेरी मिरे सामने लाने वाले।

चाहे दौलत न हो पर प्यार बड़ा होता है,
होते हैं दिल के बहुत अच्छे 'मवाने' वाले।

ढूंढती है तुम्हें इस दौर की हर इक औरत,
हो कहां, द्रौपदी की लाज बचाने वाले।

हम बताएंगे तुझे प्यार किसे कहते हैं,
तू कभी सामने आ ख़्वाब में आने वाले।
</poem>
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