1,296 bytes added,
23:27, 3 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता भट्ट
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम्हें जाने की हठ है; मैं निःशब्द,
मेरी श्वासों में तेरी वही सुगंध शेष है।
तुमने पलों में भ्रम तोड़ डाले सब,
मेरा अब भी वचन- अनुबंध विशेष है।
तूने कंकड़ बताया जिन्हें राह का,
मेरे लिए अक्षत बना- तेरा वो विद्वेष है।
अपमान सहना और कुछ न कहना,
केवल यही निश्छल प्रेम का संदेश है।
'''तुम प्रथम ही रहना, मैं अंतिम सही,'''
सम्मोहन का यों तो सुन्दर ये उपदेश है।
'कविता' विलग हो नहीं जी सकेगी,
रस, छंद, अनुप्रास का ही परिवेश है।
</poem>