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05:54, 5 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अंबर खरबंदा
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<poem>
मौसम की तब्दीली कहिये या पतझड़ का बहाना था
पेड़ को तो बस पीले पत्तों से छुटकारा पाना था
रेशा-रेशा हो कर अब बिखरी है मेरे आँगन में
रिश्तों की वो चादर जिसका वो ताना मैं बाना था
बादल,बरखा, जाम, सुराही, उनकी यादें, तन्हाई
तुझको तो ऐ मेरी तौबा ! शाम ढले मर जाना था
</poem>