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किसलय / इंदिरा शर्मा

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ये किसलय के नव पल्लव
प्रकृति का अनुबंध मनोहर
हर वर्ष नया नूतन
है वसंत आगमन
दृष्टि उत्सव |
झूम रहे किसलय नव दल
वृक्ष , द्रुमों पर
हिल – हिल , खिल – खिल
कोमल - कोमल
वृक्ष , लताओं पर मानव का
शुभ दृष्टि – बंधन |
नव किसलय कोमल
हो उठा काव्यमय
मन दर्पण
जग को अर्पण |
</poem>
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