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सुनो चारुशिला / नरेश सक्सेना

24 bytes added, 12:27, 6 सितम्बर 2020
|रचनाकार=नरेश सक्सेना
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<poem>
दो रास्तों पर नहीं एक ही पर चलती हो
सुनो चारुशिला !
एक रंग और एक रंग मिलकर एक ही रंग होता है
एक बादल और एक बादल मिलकर एक ही बादल होता है
क्या कोई बता सकता है
कि तुम्हारे बिन मेरी एक वसंत ऋतु
कितने फूलों से बन सकती है?
और अगर तुम हो तो क्या मैं बना नहीं सकता
एक तारे से अपना आकाश?
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