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05:06, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
अहसास को जब फ़िक्र का दम मिलता है
तख़लीक़ का तब जा के कँवल खिलता है
विजदां भी है इक उंसुरे-मलज़ूमे-सुख़न
विजदां ही से पैराहने-फ़न सिलता है।
</poem>