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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
क्या जय मिरी हस्ती ने दिखाया मुझको
अहबाब ने भी ग़ैर ही समझा मुझको
लेकिन जो ज़रा गौर से देखा तो खुला
खुद अपने ही किरदार ने मारा है मुझे।
</poem>
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