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|रचनाकार=रमेश तन्हा
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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
क्यों अपनी ज़रूरत का ही आवाज़ा हो
औरों की तलब का भी कुछ अंदाज़ा हो
हो कस्र-ए-अना में भी रसाई की सबील
रौज़न हो, दरीचा हो कि दरवाज़ा हो।
</poem>
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