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05:53, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatRubaayi}}
<poem>
जब तजरिबे ने जर्ब लगाई, लिक्खी
अपने दिले-मुज़्तर की दुहाई लिक्खी
जो बात न बनती थी, बनाई, लिक्खी
हम ने भी रुबाई मिरे भाई लिक्खी।
</poem>