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06:59, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अंबर खरबंदा
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|संग्रह=
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<poem>
आप कह लीजिये हज़रत, के ज़माना बदला
हमने किरदार ही बदला है न लहजा बदला
हाँ, ख़राशें भी रहीं अपनी जगह ख़ूब मगर
आईना बदला न हमने कभी चेहरा बदला
मुश्किलों ने तो बहुत सोच के काँटे बोए
हमने रोके न क़दम और न रस्ता बदला
वो भी रिश्तों में नया ढूँढ रहा है मतलब
हमने जिसके लिए हर एक से रिश्ता बदला
तेरे होने का न एहसास ही मिट जाए कहीं
बस यही सोच के कमरे का न नक़्शा बदला
</poem>