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<poem>
आप शायद भूल बैठे हैं यहाँ मैं भी तो हूँ
इस ज़मीं और आसमाँ के दरमियाँ मैं भी तो हूँ

हैसियत कुछ भी नहीं बस एक तिनके की तरह
फ़िक्र-ओ-फ़न के इस समुंदर में रवाँ मैं भी तो हूँ

बे-सबब बे-जुर्म पत्थर शाहज़ादी बन गई
बस यही थी इक सदा-ए-बे-ज़बाँ मैं भी तो हूँ

इंकिसारी पाएदारी सब रवा-दारी गई
जब तकब्बुर ने कहा बढ़ कर म्याँ मैं भी तो हूँ

आज इस अंदाज़ से तुम ने मुझे आवाज़ दी
यक-ब-यक मुझ को ख़याल आया कि हाँ मैं भी तो हूँ

तेरे शेरों से मुझे मंसूब कर देते हैं लोग
नाज़ है मुझ को जहाँ तू है वहाँ मैं भी तो हूँ

रूठना क्या है चलो मैं ही मना लाऊँ उसे
बे-रुख़ी से उस की 'नुसरत' नीम-जाँ मैं भी तो हूँ
</poem>
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