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15:57, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अशोक शाह
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धरती ने जो नज़्म कहा
नदी बन गयी
नदी-मिट्टी ने मिलकर
लिख डाले गीत अनगिन
होते गये पौधे और जीव
इन सबने मिलकर लिखी
वह कविता आदमी हो गई
धरती को बहुत उम्मीद है
अपनी आखि़री कविता से
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