भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिता के नाम (दो) / अनिल जनविजय

10 bytes added, 18:11, 10 सितम्बर 2020
{{KKAnthologyPita}}
<Poem>
प्रिय पिता!
याद हैं मुझे
अपने बचपन के वे दिन
हज़ारों
घंटियों घण्टियों के बजने कीआवाज़-सी उसकी हँसी हंसी से
गूँजने लगती थीं चारों दिशाएँ परस्पर
ऊपर उछालने लगते थे
माँ डर जाती
घंटियों घण्टियों की आवाज़ बन्द हो जाती
दिशाएँ शान्त हो जाती थीं
तुम्हारी दॄष्टि चिड़िया-सी
फुदकती फिरती है
ढूँढती ढूँढ़ती हुई कुछ
पर
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,286
edits