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<Poem>
प्रिय पिता!
याद हैं मुझे
अपने बचपन के वे दिन
हज़ारों
गूँजने लगती थीं चारों दिशाएँ परस्पर
ऊपर उछालने लगते थे
माँ डर जाती
दिशाएँ शान्त हो जाती थीं
तुम्हारी दॄष्टि चिड़िया-सी
फुदकती फिरती है
पर